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ओ॒कि॒वांसा॑ सु॒ते सचाँ॒ अश्वा॒ सप्ती॑इ॒वाद॑ने। इन्द्रा॒ न्व१॒॑ग्नी अव॑से॒ह व॒ज्रिणा॑ व॒यं दे॒वा ह॑वामहे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

okivāṁsā sute sacām̐ aśvā saptī ivādane | indrā nv agnī avaseha vajriṇā vayaṁ devā havāmahe ||

पद पाठ

ओ॒कि॒ऽवांसा॑। सु॒ते। सचा॑। अश्वा॑। सप्ती॑इ॒वेति॒ सप्ती॑ऽइव। आद॑ने। इन्द्रा॑। नु। अ॒ग्नी इति॑। अव॑सा। इ॒ह। व॒ज्रिणा॑। व॒यम्। दे॒वा। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:59» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या जानकर कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (देवा) विद्वान् (वयम्) हम लोग (अवसा) रक्षा आदि से (इह) इस संसार में (सुते) निष्पन्न हुए व्यवहार में (सचा) अच्छे प्रकार युक्त (अश्वाः) और व्याप्त हुए (वज्रिणा) प्रशंसित शस्त्र-अस्त्रवाले (ओकिवांसा) सङ्ग और सम्बन्ध को प्राप्त हुए (सप्तीइव) जैसे दो घोड़े (आदने) भक्षण करने योग्य घास अदन के निमित्त वर्त्तमान, वैसे (इन्द्राग्नी) पवन और बिजुली की (नु) शीघ्र (हवामहे) प्रशंसा करते हैं, वैसे इनकी तुम भी प्रशंसा करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो विद्वान् जन सदा मिले हुए वायु और बिजुली इन दोनों पदार्थों को जानते हैं, वे इस संसार में अद्भुत क्रियाओं को कर सकते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं विज्ञाय कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा देवा वयमवसेह सुते सचाऽश्वा वज्रिणौकिवांसा सप्तीइवादने वर्त्तमानाविन्द्राग्नी नु हवामहे तथेमौ यूयमपि प्रशंसत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ओकिवांसा) सङ्गतौ सम्बद्धौ (सुते) निष्पन्ने (सचा) सचौ समवेतौ (अश्वा) व्याप्तौ (सप्तीइव) यथा युग्मावश्वौ (आदने) अत्तव्ये घासे (इन्द्रा) (नु) (अग्नी) वायुविद्युतौ (अवसा) (इह) अस्मिन् संसारे (वज्रिणा) प्रशस्ताऽस्त्रयुक्तौ (वयम्) (देवा) विद्वांसः (हवामहे) प्रशंसामः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये विद्वांसः सदा मिलितौ वायुविद्युतौ पदार्थौ विजानन्ति तेऽस्मिन् संसारेऽद्भुताः क्रियाः कर्तुं शक्नुवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे विद्वान सदैव मिश्रित असलेल्या वायू व विद्युतला जाणतात ते या जगात अद्भुत क्रिया करू शकतात. ॥ ३ ॥